कभी कभी लगता है जैसे स्टील बॉल एक दिखावा है , एक मजबूरी है। भला कोई इंसान स्टील बॉल जैसा बन ने बाद इंसान कैसे रह सकता है वह तो एक वस्तु मात्र बन कर रह जायेगा। सुख दुःख में एकसमान रहकर तो वो निर्जीव समान हो जायेगा जिसे आस पास हो रही घटनाओ से कोई फर्क ही न पड़ता हो। जब भगवन ने इंसान का जन्म दिया है तो फिर निर्जीव स्टील बाल क्यों बने ?
इस गुत्थी को सुलझाने के लिए ये समझने की ज़रुरत है कि स्टील बाल की दृड़ता का तात्पर्य चीज़ों से मतलब न रखना नहीं है और न ही इसका मतलब यह है कि हम भावनाहीन हो जाएँ। इसके विपरीत स्टील बॉल की दृड़ता कर्त्तव्य मार्ग पर आने वाली मुश्किलों को परास्त करने के लिए ज़रूरी हिम्मत का प्रतीक है। सुख दुःख के मोह जंजाल में फस कर कही व्यक्ति अकर्मण्य न हो जाये इसलिए चाहिए कि वह स्टील बॉल की तरह द्रण रहे।
स्टील बॉल का मतलब यह नहीं है की हम अपने कर्त्तव्य से ही विमुख जाएँ और कहें कि हमें किसी चीज़ से फर्क नहीं पड़ता हम स्टील की तरह द्रण हैं। यह द्रणता केवल हमें कमजोर कर देने वाले विचारों के लिए हैं न कि हमें उत्साहित और प्रेरित करने वाले विचारों या भावनाओ के लिए।
इसी तरह स्टील बाल के चरों और से एक सामान होने का यह तात्पर्य नहीं है की हम किसी के दुःख में दुखी न हों या फिर किसी के सुख में खुश न हों। स्टील बॉल का प्रयोजन आपको निस्ठुर और क्रूर बनाना नहीं है अपितु स्टील की तरह मज़बूत इरादों वाला व्यक्ति बनाने की प्रेरणा देना है जो अपने कर्त्तव्य पथ पर आने वाली बाधाओं को बिना सुख दुःख , लोभ, मोह , काम, क्रोध में फसे पार कर जाये। वही कर्मयोगी है , वही श्रेस्ठ है और वही परम शांति को प्राप्त कर पाता है।
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