जल्दी , बहुत जल्दी , बहुत ज्यादा जल्दी। अरे कितनी जल्दी है आज लोगों को, हर काम जैसे रेस हो, एक काम ख़त्म करो फिर दूसरा शुरू करो और फिर तीसरा, बिना उस काम में इन्वॉल्व हुए बस करते रहो। इस दौड़ भरी लाइफ में इंसान हमेशा हाइपर रहता है। हमेशा डरा हुआ , जल्दी में और इसी अवस्था में पूरी ज़िन्दगी बिता देता है। वो किसी चीज़ को एन्जॉय नहीं कर पता क्योंकि उसका ध्यान तो किसी तरह उसे ख़त्म करने और फिर दूसरा काम शुरू करने में रहता है। आज-कल हर चीज़ जैसे बोझ बन गई है , खाना खाना हो या कसरत करना , फ़िल्म देखना हो या किताब पढ़ना हर चीज़ जैसे बस एक टास्क है। ज़िन्दगी मनो टास्कस का सीक्वेंस बन के रह गई है और इंसान इन टास्कस को ख़तम करने कि होड़ में जीवन ख़तम कर लेता है। क्या सही में इतनी जल्दी है ? क्यों बन गया है यह जल्दी का कल्चर ? इस तरह की लाइफस्टाइल के अपने नुकसान है और उनमे सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इंसान जी ही नहीं पता जिसके लिए वह यह सबकुछ कर रहा होता है, उसे जीने का ही समय नहीं मिलता। इंसान को अपने आपको इस देर हो जाने के भय से मुक्त करना चाहिए तभी वह अपने द्वारा किये जा रहे अनुभवो का आनंद ले पायेगा। तभी उसे ज़िन्दगी के अनुभव याद रहेंगे नहीं तो उसे कुछ भी यद् न रहेगा और उसका अनुभव बेकार हो जायेगा क्योंकि उसे तो केवल जल्दी करने का , किसी तरह ख़त्म करने का ही अनुभव रहेगा न कि काम का। आजकल देखा होगा हमने कि हमारी रखने कि क्षमता कम होती जा रही है। किये हुए काम हमें याद नहीं रहते , चीज़ों को बार बार देख देख कर करना पड़ता है. इसका प्रमुख कारण यह है कि हम किसी भी क्रिया में अपने आप को इन्वॉल्व नहीं करते , हमारा पूरा ध्यान उस क्रिया में न होकर उसे किसी तरह ख़तम करने में होता है , या फिर उसे ख़तम करके मिलने वाले फायदे में होता है इसलिए हम चीज़ों को भूल जाते हैं। हमारा दिमाग बहुत शक्तिशाली है और बोहोत चमत्कारी भी, जो बात उसे ज़रूरी लगती है उसे वह कभी नहीं भूलता और जिस बात को हम जानकर या अनजाने में उतना महत्व नहीं देते उसे दिमाग याद नहीं रखता वह उसे भूल जाता है। कह सकते हैं कि यह हमारे दिमाग का सफाई कार्यक्रम है, जो महत्वपूर्ण न हो उसे भुला दो ताकि जो महत्वपूर्ण है उसके लिए जगह पर्याप्त रहे। यही कारण है कि हमें होने वाला फायदा तो याद रहता है पर किया हुआ काम नहीं। और इस तरह हम प्रकृति द्वारा दी गई सबसे अनमोल तोफे का सही तरह से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं और कमज़ोर होते जा रहे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो सदियों में विकसित हुआ हमारा दिमाग किसी कम का न रह जायेगा।
इस जल्दबाजी कि ज़िन्दगी ने हमारे अंदर देर हो जाने का जो डर उत्पन्न कर दिया है उस से हमारा आत्मविश्वास भी कम होता जा रहा है , जब हम चीज़ों को भूल जाते हैं या याद करने पे भी वे हमें याद नहीं आती तब हमारा खुद पर से भरोसा उठाने लगता है और हम कमजोर हो जाते हैं जोकि दुःख का , परेशानी का , स्वस्थ्य समस्याओं का प्रमुख कारण है। इन सब आधुनिक परेशानियों से मुक्ति का एक ही इलाज है कि खुद को मानसिक , शारीरिक और हर तौर पर मज़बूत, सुद्रण बना लें। क्योंकि हमें डरे हुए रहने कि , जल्दी जल्दी करने कि आदत सी पड़ गई है , हमें ये बहुत साधारण सी बात लगने लगी है , पर ये हमारा प्रकृति स्वभाव नहीं है और इसलिए नुकशानदेह है। केवल द्रणता है जो हमें बचा सकती है और वह अथक प्रयास से आएगी, मैं समझ पा रहा हूँ कि "द्रण बनाना" भी एक और नए टास्क कि तरह आपके मेरे दिमाग में फिट सा हो रहा है लेकिन हमें इसे एक टास्क नहीं अपितु जीने का एक तरीका मानना है तभी रोज़ रोज़ के डर से मुक्ति मिल सकेगी और हम आप एक समृद्ध जीवन जी पायेगे।
इस जल्दबाजी कि ज़िन्दगी ने हमारे अंदर देर हो जाने का जो डर उत्पन्न कर दिया है उस से हमारा आत्मविश्वास भी कम होता जा रहा है , जब हम चीज़ों को भूल जाते हैं या याद करने पे भी वे हमें याद नहीं आती तब हमारा खुद पर से भरोसा उठाने लगता है और हम कमजोर हो जाते हैं जोकि दुःख का , परेशानी का , स्वस्थ्य समस्याओं का प्रमुख कारण है। इन सब आधुनिक परेशानियों से मुक्ति का एक ही इलाज है कि खुद को मानसिक , शारीरिक और हर तौर पर मज़बूत, सुद्रण बना लें। क्योंकि हमें डरे हुए रहने कि , जल्दी जल्दी करने कि आदत सी पड़ गई है , हमें ये बहुत साधारण सी बात लगने लगी है , पर ये हमारा प्रकृति स्वभाव नहीं है और इसलिए नुकशानदेह है। केवल द्रणता है जो हमें बचा सकती है और वह अथक प्रयास से आएगी, मैं समझ पा रहा हूँ कि "द्रण बनाना" भी एक और नए टास्क कि तरह आपके मेरे दिमाग में फिट सा हो रहा है लेकिन हमें इसे एक टास्क नहीं अपितु जीने का एक तरीका मानना है तभी रोज़ रोज़ के डर से मुक्ति मिल सकेगी और हम आप एक समृद्ध जीवन जी पायेगे।
What's the hurry for....stop and enjoy..
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